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दुनिया से बाहर / विपिन चौधरी

प्रेम में पगी हुई
दो आत्माएँ
एक दुनिया में प्रवेश करती है
उस दुनिया में
जहाँ कुछ भी करीने से नहीं है
दुनिया के पायदान पर
पैर रखते ही
दोनों आत्माओं में
खींच-तान शुरू हो जाती है
पहले दोनों के कन्धे से कन्धे भिड़ते हैं
फिर एक दूसरे के सिर से सिर टकराते हैं
एक वक़्त के बाद उनके भीतर के बर्तन
एक दूसरे के ऊपर ढहने लगते हैं
कभी उनके बीच इतनी नज़दीकी थी की
दोनों तरफ़ से आती साँसो को
अलग-अलग पगडण्डियाँ ना मिल सके
आज इस दुनिया में आकर
दो जन्मों जैसी दूरी
उनके बीच आ विराजी
जल्दी ही
दोनों आत्माएँ
हड़बड़ाते हुए इस पकी-पकाई दुनिया से
एक साथ ही बाहर लौट गईं