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दुर्भाग्य / अजय मंगरा

हाय !
कैसी दुर्दशा तेरी
हे मेमने !
प्यास से बिलखता हुआ,
ठंड से तड़पता हुआ
कम्पित कदमों पर,
लड़खड़ाता हुआ
जब अपनी माँ की ओर तु बढ़ा
तो मिली तुझे,
टांगो की मार,
दाँतों की खरोंच,
नथने से धक्के,
घृणा
तिरस्कार।
बिजली का दिल दहक गया
बादल के आँसू बह गये।
लेकिन, तेरी मर्मस्पर्शी चीख से,
निष्ठुर माँ का हृदय न पसीजा।
दुर्भाग्य तेरा।