झेल रही है
नयी सदी यह
मन-मन की संवादहीनता
मन पर हावी हैं इच्छाएँ
अस्त-व्यस्त ये दिनचर्याएँ
छीन रही है
सुख का अनुभव
जीवन की संवादहीनता
आभासी दुनिया के नाते
पल में आते, पल में जाते
दिल से दिल को
जोड़ न पाती
धड़कन की संवादहीनता
कैसा दुहरापन जीते हैं
संबंधों से हम रीते हैं
बाँट रही
मन के आँगन को
आँगन की संवादहीनता