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दुहुक संजुत चिकुर फूजल / विद्यापति

 दुहुक संजुत चिकुर फूजल, दुहुक दुहू बलाबल बूझल ।
दुहुक अधर दसन लागल, दुहुक मदन चौगुन जागल ।
दुअओ अधर करए पान, दुहुक कंठ आलिंगन दान ।
दुअओ केलि संग संग भेलि, सुरत सुखे बिभाबरि गेलि ।
दुअओ सअन चेत न चीर, दुहु पिआसन पीबए नीर ।
भनइ विद्यापति संसय गेल, दुहुक मदन लिखना देल ।

[नागार्जुन का अनुवाद : दोनों के बाल साथ-ही-साथ खुल गए। दोनों को दोनों की ताक़त और कमज़ोरी समझ में आई। दोनों के होंठों पर दोनों के दाँत गड़ गए, दोनों के अन्दर कामदेव चार गुना अधिक ज़ोरदार हो उठा। दोनों दोनों के होंठ चूसते रहे, दोनों ने एक दूसरे को आलिंगन दिया। दोनों ने साथ-साथ काम-केलि की। दोनों साथ-ही-साथ सुख में विभोर हो गए। सेज पर दोनों ऐसे बेसुध थे कि कपड़ों का होश नहीं था। दोनों को बार-बार प्‍यास लगती थी, दोनों बार-बार पानी पीते थे। विद्यापति ने कहा, 'खटका मिट गया, कामदेव ने दोनों के प्रेम पर मोहर लगा दी...']