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दूतीया रोॅ चान / नवीन ठाकुर ‘संधि’

सूरज चॉन रोॅ कटिटा होलै मेल,
ओकरैह सें बनी गेलै बड़का खेल।

दिनोॅ में रहै छै दुयोॅ एक्के साथ,
भरी दोॅम करै छै प्रेमोॅ रोॅ बात।
होतैैं आड़ कहाँ बिताय छै रात,
कत्ते बड़ोॅ दै छै चानोॅ केॅ अघात?
सच में अन्हार छेकै सूरज रोॅ जेल,
सूरज ...खेल।

दोषी छै चॉन जें बदलै छै रोज रंग रूप,
यही लेॅ सूरज रहै छै एक दम्हैं चूप।
चॉन रोज कटै छै घटै छै रहै छै मूक,
चानोॅ में बैठी देखोॅ के ताकै छै टुकटुक की गोरी के मुख
धुइयां उड़ैनें, चानोॅ पर जाय छै,
देखी लेॅ "संधि" के रेल।
सूरज ...खेल।