दूब की कोमल नोकें
चलते हुए पाँव में
लिखती हैं
अपने छोटी होने की
बड़ी कहानी।
पाँव ने रची हैं पगडंडियाँ
पगडंडियाँ पकड़कर
पाँव पहुँचते हैं रास्ते तक
चलते हुए पाँव बतियाते हैं रास्तों से
बिछी हुई दूब पूछती है
तलवों का हाल
और पोंछती है माटी।
दूब की हरी नोक की कलम
तलवों की स्लेट पर
लिखती हैं
माटी के तन भीतर
हरियाला मन।
उड़ते हुए पक्षी की
परछाईं से खेलती है दूब
रात-दिन
धूप
थककर विश्राम करती है
दूब की सेज पर।
चाँदनी करती है
रुपहला श्रृंगार
और ओस बुझाती है
दूब की प्यास
थके हुए पाँव को
देती है विश्राम
बेघरों को देती है
घर का रास्ता
और भटके हुओं को पथ
और रात का बसेरा
दूब
अनाथ बच्चों का है
पालना और
खेल का मैदान।
दूब
पृथ्वी पर
जहाँ भी उगी है
जमी है
और चलते हुए
पाँव में लिखती है
अपने छोटे होने की
बड़ी कहानी।