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दूरदर्शन लोक / मनोज श्रीवास्तव


    दूरदर्शन लोक

बड़े इत्मिनान से
बूढ़ी परिभाषाओं से
तलाक ले रहे लोग
नई-नवेली परिभाषाओं के संग
सात फेरे लगा रहे हैं
और कुंवारे-अर्ध-कुंवारे
ब्याहे-अनब्याहे
बच्चे-बूढ़े सभी
दूरदर्शन के ख्वाबगाह में
हनीमून मनाने जा रहे हैं

शिक्षा-प्रसार के
थके अभियान के
अन्धदौड़ में
बासी पठन परम्पराओं से
उकता रहे बच्चे,
अपनी धर्म-नानी
यानी टी.वी. सयानी
के चश्मदीद कथालोक में
बटोर रहे हैं
खुद के लिए
नायाब खेल-खिलौने

दूरदर्शन लोक में
छिड़े जंगली जंग में
निर्लज्ज उदारवाद इतरा रहा है
वहां जिस्म पर
वस्त्रों की हुकूमत के खिलाफ
यानी, इसे
कपड़ों के कैदखाने से
रिहा करने के लिए
एक वहशी आदमजाद
फ़तह का पताका लहरा रहा है
और सामाजिक परिवर्तन के मुद्दे पर
अर्थात--
शैतानी नस्ल की ज़रूरत पर
वह धारा-प्रवाह बतियाने लगा है
और भूख-प्यास-संत्रास-कुंठा
को दिखाकर अंगूठा,
हमें राष्ट्र-समाज-पड़ोस-परिवार
से बाहर
सैर सपाटा कराने लगा है,
ऊटपटांग संबंधों के
मकड़जाल में
आठोयाम जकड़ने लगा है

देश के कोने-कोने
उसकी जादुई जीभ
लगी है लपलपाने,
उसने अपनी जुबान पर
बाकायदा बैठा लिया है
सीज़र, चंगेज़ और सिकंदर,
उससे बाँध लिया है
बारूद उगलने वाला शब्दकोश,
भाषा को सरेआम
कर दिया है नंगा
और लूट रहा है
उस अबला की आबरू,
अपने हर लफ्ज़ में घोल दी है
कुत्ते की कामुकता
और व्याघ्र की नृशंसता

उसके साज़िश-तंत्र में लिप्त है
भेड़ियों की नस्ल से मेल खाते
लोगों का एक संगठित गिरोह
जिन्हें चक्रवातीय बवंडर में
ताबड़तोड़ कड़कते
घरघराते-चिकराते
कपालों, हड्डियों, पत्थरों, दरख्तों
की प्रलयंकारी टकराहटों के
कर्ण-घातक लय पर
नाचने-गाने का बड़ा दंभ है
और गर्वित है
समूचा दूरदर्शन-लोक
उन महिमा-मंडित भेड़ियों के
रावणीय अंदाज़ पर
उनसे रचित-पोषित
दुराचार-संहिता पर.