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दूल्हों का बाजार / संजीव 'शशि'

जो बोले ऊँची बोली वो,
है पहला हकदार।
सजा है दूल्हों का बाजार।।

जैसा दूल्हा चाहें आकर,
वैसी रकम लगाएँ।
जितना गुड़ डालेंगे भाई,
उतना मीठा पाएँ।
इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर,
बिकने को तैयार।

पैदा होने से सर्विस तक,
जितनी रकम लगायी।
लड़की के पापा से करनी,
है सारी भरपाई।
प्यार भरे रिश्तों में देखो,
जारी है व्यापार।

बेटी देने वाला देखो,
बना हुआ फरियादी।
बिन दहेज कैसे कर पाये,
वह बिटिया की शादी।
बिन दहेज वाली दुल्हनिया,
है किसको स्वीकार।