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दू गाही दोहा / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

शरदक ई राका निशा नभमे चकमक चान
वैज्ञानिक गण जा जतय छिटलनि मुदित मखान
से छिड़िआयल ब्योममे लागल देखि पथार
बिछबा ले अइली उषा लेने सोनक थार
अन्हरोखे उठि भुडुकबा सबटा बिछि लय गेल
ताहि तामसेँ रविक मुख लाल बुन्द अछि भेल
उज्जर-उज्जर व्योममे मेघखण्ड उड़िआय
चन्ना सीरक हेतु की रहला तूर धुनाय
उड़ि-उड़ि बहुतो तूर से हिम-गिरि पर चल गेल
हिमालयक अछि शिखर तेँ उज्जर दप दप भेल
जखनहि कन्याराशिमे राखथि पैर उठाय
तखनहि कन्यागत जकाँ सूर्यक मुख बिधुआय
तुला राशि मे जाय कय तौलत लोक प्रताप
सक्कत कतबा डाँड़ कय अयला कन्या-बाप
करथि सन्तकेँ कूहिकऽ चास-बास निज फैल
तनिका लगइत छनि मधुर नीमो चढ़ल करैल
फार धिपा रहलाह तेँ तनिके लय यमराज
जइतहि पड़तनि पोन पर पूत न औतनि काज
लक्ष्मीकेर पर्याय भऽ के न होय उन्मत्त
तनिका साउङ जे करय सैह पुरूष अलबत्त
मेघक गुम्मी देखिकय सिहरय पीपर पात
यदि ई पाथर उझिललक पातक करत निपात
जा हेमन्त कुमार लग लगतनि वृश्चिक दंश
जेँ वराह अवतारकेँ दुसय छुछुन्नरि वंश