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दू तिनका / रामपुकार सिंह राठौर

नदिया के धारा में,
तैर रहल दू तिनका,
लहर के थपेड़ा से,
एक जगह मिल जाहे ,
साथ-साथ चलला में-
सट-पट के खुश केतना!
उछलऽ हे, कूदऽ हे,
दुन्नो तो नितरा हे।
विधना के चाल अलग,
एगो डूबल भँवरी में,
दूसर न ठहरऽ हे,
कैसन भागल जाहे।
एके गो भँरी तो
ने हे ऊ धारा में,
मूरख तिनका के अब, कौन हे जे समझावे।
लहर पर लहर हे औ,
भँवर पर, भँवर केतना!
आने के भँवरी तो,
ओकरी निगल जाहे।