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दृग तुम चपलता तजि देहु / जुगलप्रिया

दृग तुम चपलता तजि देहु।
गुंजरहु चरनार विंदनि होय मधुप सनेहु॥
दसहुँ दिसि जित तित फिरहु किन सकल जग रस लेहु।
पै न मिलि है अमित सुख कहुं जो मिलै या गेहु॥
गहौ प्रीति प्रतीत दृढ़ ज्यों रटत चातक मेहु।
बनो चारु चकोर पिय मुख-चंद छवि रस एहु॥