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देंखतीं आकाश आँखें / हरिवंशराय बच्चन

देखतीं आकाश आँखें!

श्वेत अक्षर पृष्ठ काला,
तारकों की वर्णमाला,
पढ़ रहीं हैं एक जीवन का जटिल इतिहास आँखें!
देखतीं आकाश आँखें!

सत्य यों होगी कहानी,
बात यह समझी न जानी,
खो रही हैं आज अपने आप पर विश्वास आँखें!
देखतीं आकाश आँखें!

छिप गये तारे गगन के,
शून्यता आगे नयन के,
किस प्रलोभन से करातीं नित्य निज उपहास आँखें!
देखतीं आकाश आँखें!