Last modified on 17 सितम्बर 2013, at 21:29

देखैत दुन्दभीक तान / गजेन्द्र ठाकुर

देखैत दुन्दभीक तान
बिच शामिल बाजाक

सुनैत शून्यक दृश्य
प्रकृतिक कैनवासक
हहाइत समुद्रक चित्र

अन्हार खोहक चित्रकलाक पात्रक शब्द
क्यो देखत नहि हमर चित्र एहि अन्हारमे
तँ सुनबो तँ करत पात्रक आकांक्षाक स्वर

सागरक हिलकोरमे जाइत नाहक खेबाह
हिलकोर सुनबाक नहि अवकाश

देखैत अछि स्वरक आरोह अवरोह
हहाइत लहरिक नहि ओर-छोर
आकाशक असीमताक मुदा नहि कोनो अन्त

सागर तँ एक दोसरासँ मिलि करैत अछि
असीमताक मात्र छद्म, घुमैत गोल पृथ्वीपर,
चक्रपर घुमैत अनन्तक छद्म।

मुदा मनुक्ख ताकि अछि लेने
एहि अनन्तक परिधि
परिधिके नापि अछि लेने मनुक्ख।

ई आकाश छद्मक तँ नहि अछि विस्तार,
एहि अनन्तक सेहो तँ नहि अछि कोनो अन्त?
तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!

स्वरके देखबाक
चित्रके सुनबाक
सागरके नाँघबाक।
समय-काल-देशक गणनाक।

सोहमे छोड़ि देल देखब
अन्हार खोहक चित्र,
सोहमे छोड़ल सुनब
हहाइत सागरक ध्वनि।

देखैत छी स्वर, सुनैत छी चित्र
केहन ई साधक
बनि गेल छी शामिल बाजाक
दुन्दभी वादक।