देखो साधो रित बसंत, होरी खेलत आद अंत।
भौंर भुलानो बाग देख, जीव-जन्तु भूले अलेख।
फैलो अद्भुत अजब रंग, भूल गयो तन रंग मतंग।
फूल देखो भूलो जहान, नहिं कीनों पहचान जान।
वाश भुलायो इन्द्रलोक, भूले सुरनर मुनि अशोक।
जीव चौरासी खेले फाग, फगुवा लागत बरन बाग।
चार जुग्ग लग जुगल जोग, वास आसमन भुगत भोग।
उलट-पुलट फिर मिलत मूल, सूकत साका दुरत फूल।
दुःख-सुख बांधी कर्म खोर, जूड़ीराम लख जुलम जोर।