समुद्र मंथन के बाद
आया
सिर्फ देवताओं के हिस्से
अमृत-कलश
जबकि मथा मिलकर समुद्र
देव-दानव दोनों ने
दानवों
अर्थात् नादानों ने
सहे कष्ट सबसे अधिक
फिर भी गये छले
रहे वंचित वे ही
अमृत-बूंद से!
षडयंत्रकर्ता
विश्वासहंता
तबसे ही
राज करता
सुख भोगता
और पूजित होता है
देवता कहलाता है!