नीला देवदार का वन है।
जिस पर मोहित हुआ पवन है ।
छाया के अधरों पर झुक कर,
तरूवर करते मृदु-मृदु मर्मर,
हिमगिरि में निदाध फैला है,
सुखा रहीं हरिणियाँ बदन हैं,
नीला देवदार का वन है ।
तोड़ हृदय की स्तब्ध अधिरता,
पर्वत चीर विमुक्त जल गिरता,
रूक दर्पण बन,
किसलय वन की परियों के लखता आनन है,
नीला देवदार का वन है ।
आधे ढँके चमन से लोचन,
घुटनों पर तिरछा है आनन,
शिथिलित भौंहे, पिच्छल बाँहें,
घन अलकों में बाँधे बँधन है,
नीला देवदार का वन है ।
काँप उठा हरिणी का यौवन,
हिलने लगा उठा बाँहें वन,
पवन प्रपीड़ित लतिका-तन पर,
किसका यह करती चिन्तन है
नीला देवदार का वन है।