देवभूमि की राजकुमारी क्या मरुथल स्वीकार करोगी?
मैं हर दर का दुत्कारा हूँ,
मैं किस्मत का भी मारा हूँ।
मैंने अपना सबकुछ खोया,
मैं अपना सबकुछ हारा हूँ।
न्यायालय से दोषमुक्त हूँ,
पर मंदिर में दण्ड मिला है।
और मुझे अधिकारों में बस,
ढाई गज भूखण्ड मिला है।
ईश्वर का मानवता के संग क्या यह छल स्वीकार करोगी?
देवभूमि की राजकुमारी क्या मरुथल स्वीकार करोगी?
रंजकता के इस युग में अब,
पावनता का मोल नहीं है।
देख चढ़ावा ईश्वर खुश है,
साधकता का मोल नहीं है।
भौतिक सुख का मोह त्यागकर,
यदि आ पाओ तो ही आओ।
निष्ठा से यदि वचन प्रणय के,
सभी निभाओ तो ही आओ।
उपहारों के बदले में क्या तुलसीदल स्वीकार करोगी?
देवभूमि की राजकुमारी क्या मरुथल स्वीकार करोगी?
वैभव कम है किंतु नेह का,
भण्डारण मेरी कुटिया है।
स्वाभिमान से भरा कोष पर,
साधारण मेरी कुटिया है।
सभी कोष पूरी निष्ठा से,
तुम्हे समर्पित कर सकता हूँ।
यदि आवश्यक हुआ कभी तो,
जीवन अर्पित कर सकता हूँ।
अपने प्रश्नों का तुम बोलो क्या यह हल स्वीकार करोगी?
देवभूमि की राजकुमारी क्या मरुथल स्वीकार करोगी?