देवा हम न पाप करंता।
अहो अंनंता पतित पांवन तेरा बिड़द क्यू होता।। टेक।।
तोही मोही मोही तोही अंतर ऐसा।
कनक कुटक जल तरंग जैसा।।१।।
तुम हीं मैं कोई नर अंतरजांमी।
ठाकुर थैं जन जांणिये, जन थैं स्वांमीं।।२।।
तुम सबन मैं, सब तुम्ह मांहीं।
रैदास दास असझसि, कहै कहाँ ही।।३।।