Last modified on 15 अक्टूबर 2015, at 10:41

देशी खीज / इला कुमार

ढोलक की थापों से निर्लिप्त
बड़ी बहू
बातों के पार छिपे अदृश्य सुख को
तलाशती है

शादी की चहल-पहल से
उसे
क्या लेना-देना
हां नेग में मिले कंगन की झिलमिलाहट
सुच्चे मोतियों के बीच
मोहती तो है

रह-रहकर वह उचकती है
एड़ियों के बल
पास खड़े सुदर्शन पुरुष की ओर

लुभावनी अदा का दांव
अनचटके ही मोह लेता है
किशोरियों के झुण्ड को

दरी पर बैठी औरतों की निगाहों में भरी हसरत
पर्दे तक छलक उठती है
कोई नहीं देख पाता

भरी-पूरी देह-यष्टि में सुलगते अभाव को
ठिगने पति के बगल में
पीठ झुकाकर खड़े रहना
हर पल
कितना त्रासद है
वह भी विदेश में...