देह-दंड
मैं भोग रहा हूँ,
फिर भी,
अपने
पुष्ट प्राण से,
स्वागत करता हूँ-
कहता हूँ;
आएँ,
बैठें,
मुझे सुनाएँ-
नई-नई
अपनी
रचनाएँ,
मुझे रिझाएँ,
देह-दंड की
व्यथा मिटाएँ।
रचनाकाल: ०१-०४-१९९०
देह-दंड
मैं भोग रहा हूँ,
फिर भी,
अपने
पुष्ट प्राण से,
स्वागत करता हूँ-
कहता हूँ;
आएँ,
बैठें,
मुझे सुनाएँ-
नई-नई
अपनी
रचनाएँ,
मुझे रिझाएँ,
देह-दंड की
व्यथा मिटाएँ।
रचनाकाल: ०१-०४-१९९०