किसी हसीन फूल की तरह
उमगना था
देह को
बहना था पहाड़ी दर्रों के बीच
किसी रुपहली झरने-सा
उदास
कमरे में पड़ी है शिथिल
किसी उतरे हुए लिबास की तरह
किसी हसीन फूल की तरह
उमगना था
देह को
बहना था पहाड़ी दर्रों के बीच
किसी रुपहली झरने-सा
उदास
कमरे में पड़ी है शिथिल
किसी उतरे हुए लिबास की तरह