देह में संचित है
भावनाओं की कमजोरी
विषयों का लोभ
कामनाओं की चाहत
अपार महत्त्वाकांक्षाएँ
देह नहीं समझ पाती
कष्टों से जूझते रहने
और पार पाने की जुगलबंदी
अबूझ पहेली
बन जाती है देह
अपने हिस्से का आसमान
और धरती जीकर
शून्य में समा जाती है देह