अहसासों का बस्ता अटारी पर रखा है
अलमारी में बन्द पड़ी हैं इच्छाएँ
एक देह है जो बिछी है
घर के दरवाज़े से लेकर
रसोई, बैठक और बिस्तर तक
न घिसती है
न चढ़ता है मैल इस पर
सलवटें निकाल देने पर हर बार
पहले सी ही नई नज़र आती है
कमबख्त़
अहसासों का बस्ता अटारी पर रखा है
अलमारी में बन्द पड़ी हैं इच्छाएँ
एक देह है जो बिछी है
घर के दरवाज़े से लेकर
रसोई, बैठक और बिस्तर तक
न घिसती है
न चढ़ता है मैल इस पर
सलवटें निकाल देने पर हर बार
पहले सी ही नई नज़र आती है
कमबख्त़