कोई ना करेगा एतबार
जुलम इतने करि डारे ।
सूरज पै चादर ढक दीनी
अँधियारे में मन की कीनी
देह करी लाचार
जुलम इतने करि डारे ।
जन के प्रान, थकन के मारे,
भय से काँप रहे बेचारे
जैसे पात-बयार
जुलम इतने करि डारे ।
कोई ना करेगा एतबार
जुलम इतने करि डारे ।
सूरज पै चादर ढक दीनी
अँधियारे में मन की कीनी
देह करी लाचार
जुलम इतने करि डारे ।
जन के प्रान, थकन के मारे,
भय से काँप रहे बेचारे
जैसे पात-बयार
जुलम इतने करि डारे ।