Last modified on 15 मार्च 2017, at 14:23

देह से परे / विनोद शर्मा

देह से परे (ट्रांस-जेंडर)

मैं एक औरत हूं,
मगर रहती हूं पुरुष की देह में
दुर्भाग्य से, कुदरत की भूल के कारण
फंस गई मैं एक गलत देह में,
शहरी विकास मंत्रालय के इस्टेट ऑफिस के
उस कर्मचारी की तरह
जिसे मंत्रालय के किसी क्लर्क की
गलती से अलॉट कर दिया गया है गलत क्वार्टर
किसी सरकारी कॉलोनी में

असल में मैं स्त्री हूं मगर लगती हूं पुरुष
मनुष्य की देह में रह कर भी देह से परे हूं

जिंदगी के नाटक में
लड़के का अभिनय करते करते
थक चुकी मुझ बदनसीब अभिनेत्री का
बचपन तो किसी तरह बीत गया
मगर जवानी ने ला खड़ा किया मुझे
जिंदगी के एक अजीबोगरीब मोड़ पर

पुरुष मुझे अच्छे लगते हैं
खिंचता है मेरा दिल उनकी ओर
जैसे चुम्बक को ओर लोहे के कण

मगर जिस दुनिया में पुरुष और स्त्री का प्यार
देह से परे होकर भी व्यक्त होता है
देह के माध्यम से ही
वहां मेरे निमंत्रण को ठुकराकर
मंुह फेर लेते हैं पुरुष
फुसफसाते हुए मेरे कानों में-
”सॉरी आइ ऐम नॉट ए गे“
”आइ ऐम ऑल्सो नॉट ए लेज्बिअन“-
मैं चिल्लाती हूं मगर मेरी चीख,
इस आत्मकेन्द्रित दुनिया की,
उदासीनता के विशाल
बियाबान के, सुनसान किनारों से टकराकर
लौट आती है मेरे कंठ में।