♦ रचनाकार: अज्ञात
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दैहों-दैहों कनक उर दार,
सिपईरा डेरा तो करो मोरी पौरी में।
अरे हां हां री सहेली
कहना गये तोरे घर वाले?
कहना गये राजा जेठ लटकनी,
ऊंचे महल दियरा जारें,
अरे हां रे सिपइरा हारे गये हैं घरवारे
और परदेश गये मोरे जेठ,
डेरा तो करो मोरी पौरी में।
अरे हां री सहेली, काहां ल्यावे तोरे घरवारे,
और का हो ल्यावे राज जेठ,
ऊंचे महल दियरा जारे।
अरे हां रे सिपइरा, वो तो लोंगे ल्यावे मोरे घरवारे,
और लायची ल्यावें राजा जेठ,
सिपइरा डेरा तो करो मोरी पौरी में। दैंहो कनक...