दै कहि बीर! सिकारिन को, इहि बाग न कोकिल आवन पावै।
मूँदि झरोखनि मंदिर के, मलयानिल आइ न छावन पावै॥
आए बिना 'रघुनाथ बसंत को, ऐबो न कोऊ सुनावन पावै।
प्यारी को चाहौ जिवाओ धमारा तौ गाँव को कोऊ न गावन पावै॥
दै कहि बीर! सिकारिन को, इहि बाग न कोकिल आवन पावै।
मूँदि झरोखनि मंदिर के, मलयानिल आइ न छावन पावै॥
आए बिना 'रघुनाथ बसंत को, ऐबो न कोऊ सुनावन पावै।
प्यारी को चाहौ जिवाओ धमारा तौ गाँव को कोऊ न गावन पावै॥