मन के भीतर
मन के बाहर
दोनों ओर गीत वासंती
कोरा पन्ना ऋतु का
उस पर हमने
लय-छंदों की रची रँगोली
बगराये वसंत ने औचक
बिखरा दी फूलों की झोली
याद तुम्हें भी
होगी पहली
सजनी सुनो, प्रीत वासंती
देह हमारी जैसी भी है
उसमें हम मधुमास जगाएँ
याद छुवन की पहली-पहली
आओ, उसको हम दुलराएँ
सच है
जन्मों-जन्मों से हैं
हम-तुम, सखी, मीत वासंती
यह जो राग हमारे भीतर
सकल सृष्टि में वह ही व्यापा
जो इच्छाओं को उपजाता
उस देवा का यही पुजापा
आँकें होठों पर
सतिये हम
अंगों रचें रीत वासंती