नदी के दोनों तटों पर
बराबर जल-धार लिखना
रात के तन पर सुबह का उजाला
हर बार लिखना
आँख में सपने, अधर पर मखमली मुस्कान लिखना
ख़ुशबुओं के छंद में वनफूल का आख्यान लिखना
बुझे चूल्हों के बदन पर दहकता
अंगार लिखना
दरख्तों की पत्तियों पर हरेपन की ग़ज़ल लिखना
चहचहाता गाँव लिखना, लहलहाती फसल लिखना
वनपखेरू के नयन में प्राकृतिक
अभिसार लिखना
क्षीरमुख शिशु-होंठ पर ही स्तनित स्पर्श लिखना
चुहचुहाए पसीने से ही सृजन का उत्कर्ष लिखना
जेठ की तपती धरा पर सावनी
बौछार लिखना
मत लिखो गुजरात बर्बर, अयोध्या भी नहीं लिखना
लिखो जश्ने-गोधरा मत, बामियाँ भी नहीं लिखना
नहीं चीखों-आँसुओं से किसी के
त्योहार लिखना ।