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दोपहर का कबूलनामा / समीह अल कासिम

मैंने बोया एक दरख़्त
मैंने नफ़रत की उसके फलों से
मैंने चूल्हे में जलाईं उसकी डालियाँ
मैंने बनाई एक सारंगी
मैंने बजाई एक धुन

मैंने तोड़ दी सारंगी
मैंने खो दिए फल
भूल गया मैं धुन
मैंने...मातम मनाया उस पेड़ का ।