सिद्धि विनायक आप हैं, श्री गणेश गणनाथ।
दें मेरे इस माथ पर, निज वरदायी हाथ॥
मेरा संशय मिट सके, दूर रहे अज्ञान।
सरस्वती की हो कृपा, मिल जाए वरदान॥
माता वीणावादिनी, मुझ पर दें कुछ ध्यान।
स्वच्छ बने कलुषित हृदय, मिट जाए अज्ञान॥
करता हूँ मैं साधना, सरस्वती की नित्य।
माँ ही मेरे छन्द में, भर देती लालित्य॥
जब-जब मैंने हृदय से, लिया आपका नाम।
चल पड़ती है लेखनी, अविरल गति अविराम॥
ऐसा क्या संभव नहीं, जो ले तेरा नाम।
सरस्वती तुम धन्य हो, बन जाते सब काम॥
सबसे पहले गुरु नमन, जिनसे पाया ज्ञान।
जिनके आशीर्वाद से, आज बना इंसान॥
जिनसे सीखा है कभी, एक वर्ण का ज्ञान।
रह कृतज्ञ मैं मानता, उनको ब्रह्म समान॥
सबको करना चाहिए, गुरुजन का सम्मान।
मैं तो गुरु को मानता, सद्यः ब्रह्म समान॥