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दोहावली-6 / बाबा बैद्यनाथ झा

निभा भूमिका सब यहाँ, जाते हैं परलोक।
कोई जाता स्वर्ग है, कोई भोगे शोक॥

ज्ञानी जन कहते नहीं, अपने को विद्वान।
जो ऐसा कहता फिरे, समझो है नादान॥

खान-पान पशु भी करे, करते मैथुन-कर्म।
जो नर इतना ही करे, वह कितना बेशर्म॥

कोई कवि करता नहीं, सुख-समृद्धि की चाह।
वह तो सुनना चाहता, शुद्ध हृदय से वाह॥

दिल का कचरा साफ क्या, कर सकती सरकार।
लाख लगा ले जोर फिर, रहता भ्रष्टाचार॥

अपना हित सब जीव ही, समझे एक समान।
पर हित जो करता सदा, वह है सन्त महान॥

अपने दम खम पर सदा, सिंह बने वनराज।
प्रतिभाषाली को मिले, पूर्ण विश्व में ताज॥

पर उन्नति को देखकर, जो होता बेचैन।
वही दुष्ट फिर रह व्यथित, दुख भोगे दिन-रैन॥

बहुत प्रशंसक जब मिले, है यह अच्छी बात।
बस इतने में फूलकर, मत भूलो औकात॥