दोहा संख्या 141 से 150
श्री सबहि कहावत राम के सबहि राम की आस।
राम कहहिं जेहि आपनो तेहि भजु तुलसीदास।141।
जेहि सरीर रति राम सों सोइ आदरहिं सुजान।
रूद्रदेह तजि नेहबस बान भे हनुमान।142।
जानि राम सेवा सरस समुझि करब अनुमान।
पुरूषा ते सेवक भए हर ते भे हनुमान।143।
तुलसी रघुबर सेवकहि खल डाटत मन माखि।
बाजराज के बालकहि लवा दिखावत आँखि।144।
रावन रिपुके दास तें कायर करहिं कुचालि।
रवर दूषन मारीच ज्यों नीच जाहिंगे कालि।145।
पुन्य पाप जस अजस के भावी भाजन भूरि।
संकट तुलसीदास को राम करहिंगे दूरि।146।
खेलत बालक ब्याल सँग मेलत पावक हाथ।
तुलसी सिसु पितु मातु ज्यों राखत सिय रघुनाथ।147।
तुलसी दिन भल साहु कहँ भली चोर कहँ राति।
निसि बासन ता कहँ भलेा मानै राम इतानि।148।
तुलसी जाने सुति समुझि कृपासिंधु रघुराज।
महँगे मनि कंचन किए सौंधें जग जल नाज।149।
सेवा सील सनेह बस करि परिहरि प्रिय लोग ।
तुलसी ते सब राम सों सुखद सँजोग बियोग।150।