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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 30

दोहा संख्या 291 से 300


को को न ज्यायो जगत में जीवन दायक दानि।
भयो कनोड़ो जाचकहि पयद प्रेम पहिचानि।291।

साधन साँसति सब सहत सबहि सुखद फल लाहु।
तुलसी चातक जलद की रिझि बूझि बुध काहु।292।

 चातक जीवल दायकहि जीवन समयँ सुरीति।
तुलसी अलख न लखि परै चातक प्रीति प्रतीति।293।

जीव चराचर जहँ लगे हैं सब को हित मेह ।
तुलसी चातक मन बस्यो घन सों सहत सनेह।294।

डोलत बिपुल बिहंग बन पिअत पोखरिन बारि।
सुजस धवल चातक नवल तुही भुवन दस चारि।295।

मुख मीठे मानस मलिन कोकिल मोर चकोर।
सुजस धवल चातक नवल रह्यो भुवन भति तोर।296।

बास बेसि बोलनि चलनि मानस मंजु मराल।
तुलसी चातक प्रेम की कीरति बिसद बिसाल।297।

 प्रेम न परखिअ परूष्पन प्यद सिखावन एह।
जग कह चातक पातकी ऊसर बरसै मेह।298।

होइ न चातक पातकी जीवन दानि न मूढ़।
तुलसी गति प्रहलाद की समुझि प्रेम पथ गूढ़।299।

गरज आपनी सबन को गरज करत उर आनि।
तुलसी चातक चतुर भो जाचक जानि सुदानि।300।