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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 41

दोहा संख्या 401 से 410


नीच गुड़ी ज्यों जानिबो सुनि लखि तुलसीदास।
ढीलि दिएँ गिरि परत महि खैंचत चढ़त अकास।401।


भरदर बरसत कोस सत बचैं जे बूँद बराइ।
तुलसी तेउ खल बचन सर गए न पराइ।402।


पेरत कोल्हू मेलि तिली सनेही जानि।
देखि प्रीति की रीति यह अब देखिबी रिसानि।403।


सहबासी काचो गिलहिं पुरजन पाक प्रबीन।
कालछेप केहि मिलि करहिं तुलसी खग मृग मीन।404।


जासु भरेासें सोइऐ राखि गोद में सीस।
तुलसी तासु कुचाल तें रखवारो जगदीश।405।


मार खोज लै सौंह करि करि मत लाज न त्रास।
 मुए नीच ते मीच बिनु जे इन कें बिस्वास।406।


परद्रोही परदार रत परधन पर अपबाद।
ते नर पावँर पापमय देह धरें मनुजाद।407।


बचन बेष क्यों जानिए मन मलीन नर नारि।
सूपनखा मृग पूतना दसमुख प्रमुख बिचारि।408।


 हँसहि मिलनि बोलनि मधुर कटु करतब मन माँह।
 छुवत जो सकुचइ सुमति सो तुलसी तिन्ह की छाँह।409।


कपट सार सूची सहस बाँधि बचन परबास।
 कियो दुराउ चहौ चातुरीं सो सठ तुलसीदास।410।