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दोहावली / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

बहुओं की तकरार से,बिगड़ा घर संसार
पिता कलह से मर गये, मात पड़ी बीमार।
अनबन भाई में हुआ, और बँटा घर द्वार
माँ बेचारी रो पड़ी, देख टूटता प्यार।
खड़ी हुई दीवार तो, माँ हिस्से में कौन
रहे देखते लोग सब, मातम में सब मौन।
बेटा हुआ कपूत तो, माँ को देखे कौन
ममता – माया सब गई,रिश्तों में सब गौण।
दीदी भाभी और बहु, तीनों माँ के रूप
जैसे प्यासे को मिले , भरे हुए जल कूप।