चऽ लऽ वर्णक संग जेँ आलू शब्दक सन्धि।
भेल फराक फराक तेँ पसरल विकट सुगन्धि॥
कृष्ण कहाबय लै विकल आ करनीमे कंस।
निर्माणक लऽ नाम पुनि करय महाविध्वंस॥
पैसि कमल दहमे उरग छोड़ि रहल फुफकार।
मूड़ी थकुचक हेतु तेँ लोको अछि तैयार॥
अन्नक होय अजीर्ण तँ पाचक अछि पचबैत।
बुद्धिक किन्तु अजीर्ण तँ अछि विनाश रचबैत॥
जेडाबामे गर्रगों कहियो रहय करैत।
उड़न खटोलापर चढ़ल से अछि उड़ल फिरैत॥
मगजी नहि उनटैक तँ सैह थीक आश्चर्य।
चोर किए नहि कहु करय साधु सभक कौचर्य॥
दलसँ दल फुटि भेल दू तँ दलदल से भेल।
धसल पैर कछमछ करय नरकहु ठेलम ठेल॥
प्रकृति रसातल गोल आ विकृति बढ़ल आकण्ठ।
संस्कृति काहि कटैत अछि कण्ठ पकड़लक चण्ठ॥