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दोहा सप्तक-12 / रंजना वर्मा

सुख में बनते सब सगे, दुख में सब विपरीत।
जो विपदा में साथ दे, वो ही सच्चा मीत।।

ना बच्चे की माँ मरे, ना गोदी का लाल।
जीवनसाथी वृद्ध का, हरदम रहे बहाल।।

रोटी माँ के हाथ की, सबको रहे नसीब।
चाहे हो धनवान या, चाहे बहुत गरीब।।

मोर मुकुट पट पीत तन, नटखट नँद किशोर।
कर में चित नवनीत ले, नाच उठा मन मोर।।

जीते जी तरसा किये, रोटी को मां बाप।
पितृपक्ष में विप्र को, जिमा रहे हैं आप।।

झूठ सभी को भा रहा, सत्य पन्थ एकांत
उच्छृंखल झूठ पर, सत्य हमेशा शांत।।

करते रहिये काम निज, रहकर के निष्काम।
फल की चिंता छोड़िये, फल देंगे घनश्याम।।