जब आओगे सौंपने, जीवन का विश्वास।
पाओगे प्रियतम मुझे, हरदम अपने पास।।
कुटिया के बाहर खड़ा, माँगे रावण भीख।
कुपथगामियों के लिये, है यह सच्ची सीख।।
जीवन का संग्राम तो, चलता आठो याम।
शांति चाहते हो अगर, भज लो हरि का नाम।।
भरी सभा मे कुल वधू, को कर रहे उघार।
सात पुश्त लज्जित हुई, व्यर्थ हुआ श्रमभार।।
छिटक सितारे हैं गये, देखो चारो ओर।
विकल चकोरी सोचती, जाने कब हो भोर।।
रघुवर की विरुदावली, गायें चारण भाट।
नियति खड़ी हो हँस रही, लिखे विपद के ठाट।।
भाई को रहती सदा, है भाई से आश।
भाई भाई जब लड़ें, होता महाविनाश।।