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दोहा सप्तक-23 / रंजना वर्मा

पितृजनों के हेतु हो, माटी का इक दीप
राह उन्हें दिखती रहे, बाहर द्वार समीप।।

विनय करें यमराज से, इतना हो उपकार।
मृत्यु काल मे हो नहीं, कष्टों का अम्बार।।

दीपक कभी न पूछता, तेल कौन तू जात।
ले बाती को साथ मे, जलता सारी रात।।

टुकड़ा टुकड़ा धूल है, टुकड़ा टुकड़ा घाम।
दोनों ही बेचैन हैं, सुख न कहीं आराम।।

धन की है यदि कामना, पैसा पैसा जोड़।
उद्यम में संलग्न हो, आलस को दे छोड़।।

क्या होगा जग छोड़ के, या लेकर वैराग्य।
जिस ने है जैसा किया, वैसा पाया भाग्य।।

राधा राधा जब कहा, राधा हुई दयाल।
पीछे पीछे आ गया, जसुदा सुत नँदलाल।।