Last modified on 14 जून 2018, at 00:28

दोहा सप्तक-25 / रंजना वर्मा

मेरे मन मंदिर बसा, श्याम रूप अभिराम।
जिसको जो रुचिकर लगे, उसे उसी से काम।।

युग युग को देकर गया, मनमोहन सन्देश।
कभी त्याज्य होंगे नहीं, गीता के उपदेश।।

सदगुण सब पांडव सदृश, कौरव अवगुण खान।
अवगुण का अपमान नित, गुण का हो सम्मान।।

कौरव सब अवगुण बने, पांडव सदगुण शुद्ध।
दोनों में ही चल रहा, यहाँ अनवरत युद्ध।।

पागल मन है ढूंढता, विषयों में आनन्द।
नहीं जानता सुख भवन, स्वयं सच्चिदानन्द।।

पाण्डु पुत्र सी इन्द्रियाँ, विषय कौरवी सैन्य।
सत्साहस से जीत लें, यदि न दिखाये दैन्य।।

कहे सलोनी राधिका, सुन नटखट घनश्याम।
मिले तुम्हारी प्रीति तो, हृदय बने सुखधाम।।