बने देह गंगाजली, श्वांस बहे जल - धार।
अभिसिंचन श्री कृष्ण का, रोम रोम भर प्यार।।
कौरव पांडव की चमू, युद्धभूमि कुरुक्षेत्र।
देख रहे थे विकल हो, पाण्डुपुत्र के नेत्र।।
सत्य वचन सब से भला, सदा सुखों की खान।
झूठ कभी मत बोलिये, कहते सकल सुजान।।
नाता रखिये सत्य से, जब तक तन में प्राण।
सत्य युधिष्ठिर ने कहा, मिला कष्ट से त्राण।।
खर दूषण लड़ कट मरे, भगिनी हुई कुवेश।
मान हेतु प्रतिशोध अब, लीजे हे लंकेश।।
चाह रहे सुख सम्पदा, सम्पति अरु उत्थान।
कर दीजे संक्रांति में, तिल गुड़ खिचड़ी दान।।
इस बसन्त में शीत क्यों, चुभा रही है शूल ?
क्यारी क्यारी में खिले, पुनः मौसमी फूल।।