उजड़ी दुनियाँ बहन की, भाई बहुत उदास।
पत्नी बच्चे रो रहे, बची न तिनका घास।।
धक धक जलती दोपहर, गरम रख सी धूल।
मौसम बैरी ले गया, चुन बहार के फूल।।
तपी दोपहर जेठ की, लू बन गयी बयार।
सूरज हिटलर सा हुआ, करता अत्याचार।।
भू का तल तपता तवा, धूल जले ज्यों रेत।
सूखे अम्बर के नयन, टक टक ताकें खेत।।
ग्रीष्म ग्रन्थ का कर रही, आज विमोचन धूप।
पहले तो देखा नहीं, रवि का ऐसा रूप।।
आया मौसम जेठ का, बदला नभ का रूप।
सूरज नयन तरेरता, लगी जलाने धूप।।
वृक्ष नहीं छाया नहीं, चलना हुआ मुहाल।
कंकरीट के वन हुए, अब जी का जंजाल।।