विनती शिव के चरण में, करती बारम्बार।
मोह भरे संसार से, करिये अब उद्धार।।
प्यास बढ़ी सबके हृदय, धन लोलुप संसार।
स्वार्थ साधने में लगा, हृदयहीन व्यापार।।
भोर हुई सूरज उगा, फैला अमल प्रकाश।
जाग उठी सोयी धरा, करने हेतु विकास।।
आठो याम जपा करूँ, मनमोहन का नाम।
केवल उसकी ही कृपा, देती मन - विश्राम।।
झूठे इस संसार मे, सब मतलब के यार।
मतलब बिना न मित्रता, मतलब बिना न प्यार।।
मान बचाना चाहिये, दे कर भी निज प्राण।
गया मान यदि खो दिया, जीवन का अभिमान।।
आज उपवनों के अधर, पर है हाहाकार।
कहतीं कलियाँ बन्द हो, अब यह अत्याचार।।