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दोहा सप्तक-98 / रंजना वर्मा

विरहा की लंबी निशा, यादें हरसिंगार।
भीनी भीनी महकती, खुशबू जैसे प्यार।।

दूध धुला कोई नहीं, ऐसा जनता राज।
करें हवाले हम किसे,अपना देश समाज।।

तृषित कंठगत हो रहे, हैं धरती के प्राण।
हाहाकारी प्यास से, कौन दिलाये त्राण।।

घर घर बच्चे खेलते, ले कर के बन्दूक।
रोक नहीं इनको सके, हैं अभी हवक मूक।।

अब तक भय से कांपता, जलियाँ वाला बाग।
डबवाली में जल उठी, कैसी भीषण आग।।

सभी घोटाले दब गये, शेयर या बोफ़ोर्स।
सी बी आई तक लगा, है अब इनका सोर्स।।

इतना सब को दे दिया, भरा सभी का पेट।
फ़िक्स कर दिया आज है, हमने सबका रेट।।