उत्पादक की साख है, जग पहचान हजार।
चन्दा पै ते दीखती, खड़ी चीन दीवार।।11।।
पंच-तत्व को बाप है, सिरम तत्व पिरधान।
या के बिन वे ना फलैं, भूखों मरै जहान।।12।।
नाम नासतिक धरि दियौ, जिनकूँ सच्चो ज्ञान।
पाखण्डै मानैं नहीं, कुदरत है भगवान।।13।।
अर्जुन बुल बुल का करै, परे पिछारी काग।
ऊपर दुश्मन बाज है, नीचे बैरी नाग।।14।।
मन्दिर मस्जिद आपके, हैं कैसे भगवान।
पण्डित मुल्ला नित लड़ें, अपने-अपने मान।।15।।
आजादी आंधी चली, हवा दीन तक नाँय।
दिन सूरज की धूप में, राति राति में जाय।।16।।
अर्जुन भारत राज में, उड़ै मंतरी मोर।
कंचन पंख समेटते, घोटाले घनघोर।।17।।
कुदरत नैं धरती रची, लिखा न हिन्दुस्तान।
ना अमरीका, रूस है, ना ही पाकिस्तान।।18।।
तू पौधा कब ते भई, अमरबेल विष बेल।
धरती तक देखी नहीं, अमृत पियै सकेल।।19।।
उडि़ गये हंसा देश के, आजादी दिलवाय।
रह गये बगुला तीर पै, राज तिलक करवाय।।20।।
लाखन साधुन में कहीं, मिलै न काबिल एक।
उत्पादक सब काबिलै, दे फल पेड़ हरेक।।21।।