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दोहे-2 / अमन चाँदपुरी

तेल और बाती जले, दोनों एक समान।
फिर भी दीपक ही बना, दोनों की पहचान।।

उसकी बोली में लगे, कोयल की आवाज़।
ज्यों कान्हाँ की बाँसुरी, तानसेन का साज़।।

बैठे थे बेकार हम, देते थे उपदेश।
वृद्धाश्रम में डालकर, बेटे गए विदेश।।

जब-जब वो देखे मुझे, करे करारे वार।
होती सबसे तेज है, नैनों की ही धार।।

मस्जिद में रहता ख़ुदा, मंदिर में भगवान।
सबका मालिक एक है, बाँट न ऐ नादान।।

अपने मुख से कीजिए, मत अपनी तारीफ़।
हमें पता है, आप हैं, कितने बड़े शरीफ़।।

माँ के छोटे शब्द का, अर्थ बड़ा अनमोल।
कौन चुका पाया भला, ममता का यह मोल।।

जब से परदेशी हुए, दिखे न फिर इक बार।
होली-ईद वहीं मनी, वहीं बसा घर-द्वार।।

नन्हें बच्चे देश के, बन बैठे मजदूर।
पापिन रोटी ने किया, उफ! कैसा मजबूर।।

उमर बिता दी याद में, प्रियतम हैं परदेश।
धरकर आते स्वप्न में, कामदेव का वेश।।