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दोहे-2 / राम नाथ बेख़बर

26
ढीली होती जा रही, रिश्ते की हर डोर।
हर घर से गायब हुआ, ख़ुशियों वाला भोर॥

27
जाति धर्म से कर रहे, अब नेता अनुबंध।
फैलाते हैं देश में, नफ़रत के दुर्गंध॥

28
उजड़ रहे हैं हर तरफ, फूलों के बागान।
नागफनी से भर गया, यारो अब गुलदान॥

29
गठित हो रहे मुल्क़ में, रोज नये आयोग।
मगर गरीबी बन रही, बद से बदतर रोग॥

30
महँगाई ने लूट ली, बिजली, पानी, खाद।
चौराहे पर हाँफता, मरियल-सा जनवाद॥

31
ग़ायब है हर बाग़ से, अब कोकिल की कूक।
गूँज रही है शान से, अब केवल बन्दूक॥

32
जितना संभव हो सका, घर-घर बाँटा नेह।
जाने कब तक साथ दे, पंच तत्व की देह॥

33
कौन हमारा है यहाँ, किससे करते प्रीत।
मन से बाहर हो चुके बहुतेरे मनमीत॥

33
शाम सवेरे डाल पर, चिड़िया गाती गीत।
कौन चुराकर ले गया, इस दुनिया से प्रीत॥

33
जिनको कभी न चाहिए, अपने सिर पर ताज।
सच में ऐसे लोग ही, गढ़ते रहे समाज॥

34
प्रेम जगत आधार है, मानवता ही धर्म।
इन दोनों के पक्ष में, लेखन है कविकर्म॥

35
नफ़रत की आँधी चली, लुप्त हो गया प्यार।
हर बस्ती में आजकल, चमक रही तलवार॥

36
प्रेम दिलों को जोड़ता, प्रेम सिखाता त्याग।
किन्तु जलाती है हमें, नफ़रत की हर आग॥

37
धरती अम्बर कर रहे, इक दूजे से प्रीत।
हुलस-हुलस कर गा रही, वर्षा मंगल गीत॥

38
माना दुनिया में मुझे, घेरे रहा अभाव।
लेकिन मैं हर दिन रहा, अपने मन का राव॥

39
भूल गये आदर्श हम, भूले शिष्टाचार।
टूट रहे सम्बंध अब, प्रेम बना व्यापार॥

40
नफरत से तौबा किया, बाँटा घर-घर प्यार।
गुजर गए आनंद से, जीवन के दिन चार॥

41
घोर अँधेरी रात में, जुगनू मिले हजार।
घूम-घूम कर गाँव में, फैलाते उजियार॥

42
आज समय की माँग है, रख दो तुम तलवार।
दुनिया को अब चाहिए, इक दूजे का प्यार॥

43
आगे-आगे मैं चला, पीछे मेरी छाँव।
धीरे-धीरे आ गए, हम दोनों निज गाँव॥

44
जो नर अंतर प्राण को, कर लेता है शुद्ध।
सच कहता हूँ है वही, इस दुनिया का बुद्ध॥

45
तेरे मेरे प्रेम का, खत्म हो गया सत्र।
जला रहा हूँ आग में, तेरा अंतिम पत्र। ।

46
जाग-जागकर आज भी, चंदा सारी रात।
धरती पर करता रहा, किरणों की बरसात॥

47
जो मुझ पर सबसे अधिक, जता रहा था प्यार।
मौका मिलते ही किया, उसने पहला वार॥

48
जो दुख में लेते रहे, सुख के जैसा स्वाद।
उनका जीवन ही यहाँ, अब तक है आबाद॥

49
जीवन के हर मोड़ पर, चुभी पैर में कील।
फिर भी जलती है सदा, सपनों की कंदील॥

50
दो देशों की हो अगर, दिल की बस्ती शुद्ध।
सच कहता हूँ साथियों, कभी न होगा युद्ध॥