गज अलि मीन पतंग मृग, इक-इक दोष बिनाश।
जाके तन पाँचौं बसै, ताकी कैसी आश॥
सुंदर जाके बित्त है, सो वह राखैं गोइ।
कौडी फिरै उछालतो, जो टुटपूँज्यो होइ॥
मन ही बडौ कपूत है, मन ही बडौ सपूत।
'सुंदर जौ मन थिर रहै, तो मन ही अवधूत॥
गज अलि मीन पतंग मृग, इक-इक दोष बिनाश।
जाके तन पाँचौं बसै, ताकी कैसी आश॥
सुंदर जाके बित्त है, सो वह राखैं गोइ।
कौडी फिरै उछालतो, जो टुटपूँज्यो होइ॥
मन ही बडौ कपूत है, मन ही बडौ सपूत।
'सुंदर जौ मन थिर रहै, तो मन ही अवधूत॥