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दो पुरंदर चाप सुंदर / रमादेवी

दो पुरंदर चाप सुंदर पावनी भ्रू बंकता।
धौं निसाकर नीलघनयुत दिव्य लोचन लोलता॥
धौं य छवि शृंगार है आगार अमृत के भरे।
तान सुनकर बाँसुरी की रूप लोचन का धरे॥
है निसाकर या दिवाकर ने किया रथ धीर है।
देखु आली छवि निराली आज जमुना तीर है॥